CHF (Congestive Heart Failure) या संकुचनात्मक हृदय विफलता एक ऐसी स्थिति है जिसमें हृदय की पंप करने की क्षमता कमजोर हो जाती है और वह शरीर की ज़रूरत के अनुसार रक्त को पर्याप्त रूप से पंप नहीं कर पाता। यह एक गंभीर लेकिन प्रबंधनीय हृदय रोग है।
CHF (हृदय विफलता) क्या है?
CHF का मतलब है कि हृदय पूरी तरह से काम नहीं कर पा रहा है। यह कोई अचानक होने वाली बीमारी नहीं है, बल्कि समय के साथ धीरे-धीरे विकसित होती है। इसमें या तो हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं या कठोर हो जाती हैं, जिससे रक्त प्रवाह में बाधा आती है।
CHF के प्रकार:
- Left-sided heart failure (बाएं हृदय की विफलता):
इसमें बाएं वेंट्रिकल (निचला बायां चैम्बर) रक्त को शरीर में ठीक से पंप नहीं कर पाता।
Systolic failure: जब हृदय की पंप करने की शक्ति घट जाती है।
Diastolic failure: जब हृदय ठीक से भर नहीं पाता।
- Right-sided heart failure (दाएं हृदय की विफलता):
अक्सर बाईं ओर की विफलता के कारण होती है, जिससे शरीर के निचले हिस्सों में सूजन हो जाती है। - Congestive heart failure (जमाव वाली हृदय विफलता):
यह ऐसी स्थिति है जिसमें फेफड़ों और शरीर के अन्य हिस्सों में तरल (fluid) जमा हो जाता है।
CHF के लक्षण:
साँस लेने में तकलीफ (विशेषकर लेटने पर)
थकान और कमजोरी
पैरों, टखनों और पेट में सूजन
बार-बार पेशाब आना (विशेषकर रात में)
अनियमित या तेज़ धड़कनें
वजन बढ़ना (तरल जमाव के कारण)
भूख कम लगना और मतली
CHF के कारण:
उच्च रक्तचाप (Hypertension)
कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ (हृदय की रक्तवाहिनियों की रुकावट)
दिल का दौरा (Heart attack)
हृदय की मांसपेशियों की कमजोरी (Cardiomyopathy)
हृदय के वाल्व की समस्याएं
मधुमेह
शराब या नशे की अधिकता
निदान (Diagnosis):
शारीरिक परीक्षण
ECG (Electrocardiogram)
Echocardiogram
रक्त परीक्षण (BNP level)
छाती का एक्स-रे
स्ट्रेस टेस्ट या MRI
उपचार:
दवाएं:
ACE inhibitors, Beta-blockers, Diuretics (पेशाब लाने वाली दवाएं), Digoxin इत्यादि।
लाइफस्टाइल बदलाव:
नमक की मात्रा कम करना
वजन नियंत्रित रखना
शराब और धूम्रपान से बचना
नियमित व्यायाम करना
सर्जिकल उपाय:
पेसमेकर या ICD
कोरोनरी बायपास सर्जरी
हार्ट ट्रांसप्लांट (गंभीर मामलों में)
निष्कर्ष:
CHF एक गंभीर स्थिति है, लेकिन यदि समय रहते निदान और उचित इलाज किया जाए तो व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है। इसका इलाज जीवनशैली में बदलाव, नियमित दवाओं का सेवन और डॉक्टर की सलाह के अनुसार परीक्षण और निगरानी से संभव है।