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चुनावी चर्चा के बीच एक कैंडिडेट ऐसा जिसने अपना ही वोट नहीं डाला और 1 वोट से हार गया

चुनाव में हार-जीत तो लगी रहती है. लेकिन अगर कोई शख्स सिर्फ एक वोट से चुनाव हार जाए तो दुख का पहाड़ टूट पड़ता है. लेकिन उस एक मत से हार की वजह वो खुद बन जाए तो आप क्या कहेंगे. दरअसल ऐसा ही एक मामला अमेरिका के वॉशिंगटन शहर से आया जहां रेनियर सिटी काउंसिल की चुनाव में एक उम्मीदवार खुद का वोट ना डालने की वजह से हार गया

Rainier City Council Election:  एक रुपए की कीमत उससे पूछिए जिसके पास कुछ भी नहीं हो. एक वोट की कीमत उससे समझिए जिसकी वजह से सरकार गिर गई हो. एक वोट की कीमत उससे पूछिए जिसने खुद वोट ना डाला हो और चुनाव हार गया हो. यहां हम एक दिलचस्प प्रसंग की चर्चा करेंगे जहां सिर्फ एक वोट की वजह से एक उम्मीदवार दोबारा पार्षद बनते बनते रह गया. यह मामला दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका का है. चुनाव में मिसी शिकस्त के बाद डेविड ग्रीन ने कहा कि उन्हें किसी तरह का पछतावा नहीं है.

डेमियन ग्रीन को मिली हार

वॉशिंगटन डीसी शहर में रेनियर सिटी काउंसिल के लिए चुनाव हो रहा था. इस चुनाव में डेमियन ग्रीन और रयान रोथ आमने सामने थे. दोनों ने अपने पक्ष में जमकर प्रचार किया. मतदान का वो खास दिन भी आया. दोनों उम्मीदवार अपने चाहने वालों को वोटिंग सेंटर तक जाने की अपील कर रहे थे. नतीजा भी आया और रयान रोथ चुनाव जीत गए. रयान रोथ को जहां 247 मत मिले वहीं डेमियन ग्रीन के खाते में 246 वोट आए. इस तरह से ग्रीन अपना चुनाव महज एक वोट से हार गए. लेकिन आप की दिलचस्पी इस बात में नहीं बढ़ेगी कि ग्रीन महज एक वोट से क्यों हार गए. दिलचस्प बात यह है कि जिस एक मत से वो अपना चुनाव हारे वो किसी और की नहीं बल्कि खुद वजह बन गए.

दो साल पहले रेनियर आए थे रोथ

रोथ करीब दो साल पहले रेनियर आए थे. पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरी करते हुए सिटी काउंसिल के चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला किया.   रोथ के प्रतिद्वंद्वी ग्रीन थे जो 40 वर्षीय ऑटो बॉडी शॉप कर्मचारी था. ग्रीन पहले भी नगर परिषद के चुनाव में हिस्सा ले चुके थे. ग्रीन ने एक न्यूनतमअभियान का विकल्प चुना, यह विश्वास करते हुए कि चाहे वह जीते या रोथ, शहर को फायदा होगा, क्योंकि उन दोनों के पास रेनियर के छोटे शहर के चरित्र को संरक्षित करने के समान राजनीतिक लक्ष्य थे. चुनाव की रात, रोथ ने शुरुआती बढ़त हासिल की. हालाँकि, बाद के दिनों में वोटों की गिनती में उतार-चढ़ाव आया, जिसमें ग्रीन थोड़ी देर के लिए आगे रहे, इससे पहले कि हाथ से दोबारा गिनती की गई, रोथ की एक वोट से जीत की पुष्टि हुई.

चुनाव में मिली हार से पछतावा नहीं
ग्रीन ने निस्वार्थ सेवा में अपने विश्वास का हवाला देते हुए खुद को वोट न देने पर कोई अफसोस नहीं जताया.  उन्होंने संभावित रूप से अपने समर्थकों को निराश करने पर निराशा व्यक्त की. वह भविष्य में फिर से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं और अगली बार खुद को वोट देना है या नहीं, यह तय करने से पहले वह दोस्तों और परिवार से सलाह लेंगे.दूसरी ओर, रोथ ने स्वयं के लिए मतदान को मौलिक अधिकार के रूप में देखा. विडंबना यह है कि यदि रोथ ने अपनी पत्नी को याद नहीं दिलाया होता तो शायद वह वोट देने का अवसर चूक गए होते. उनके निर्णायक वोट ने अंततः उनकी परिषद की सीट सुरक्षित कर दी, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हर वोट के महत्व को बल मिला.


Jago Pahad Desk

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