लोक सभा सांसद अनिल बलूनी ने हाल ही में आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक 2024 पर चर्चा करते हुए उत्तराखंड की आपदाओं का जिक्र किया। इस दौरान उन्होंने गढ़वाली मुहावरों का इस्तेमाल करते हुए यह बताया कि किस प्रकार उत्तराखंड की जनता हर मौसम में आपदाओं से जूझती है।
उन्होंने गढ़वाली मुहावरा “लगोंदु मांगल, त औंदी रुवे। नि लगौंदूं मांगल, त असगुन ह्वे।।” का उदाहरण दिया, जिसका मतलब है कि अगर शुभ कार्य की शुरुआत सही समय पर नहीं की जाती, तो न केवल काम में रुकावट आती है, बल्कि बुरा परिणाम भी सामने आता है।
बलूनी ने कहा कि उत्तराखंड में प्रत्येक मौसम के साथ एक नई आपदा का सामना करना पड़ता है। गर्मी में भूस्खलन, बारिश में बाढ़ और सर्दियों में भारी बर्फबारी जैसी आपदाएं लगातार राज्य को प्रभावित करती हैं। इस संदर्भ में उन्होंने यह भी कहा कि आपदा प्रबंधन प्रणाली को और मजबूत करना बेहद जरूरी है, ताकि राज्य की जनता को इस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाया जा सके।
उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि आपदा प्रबंधन के लिए और अधिक संसाधन और प्रभावी उपायों की आवश्यकता है। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए वहां की प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव अधिक होता है, और इसलिए प्रदेश को विशेष ध्यान और योजनाओं की जरूरत है।
अनिल बलूनी ने कहा कि सरकार ने आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक 2024 को पेश किया है, ताकि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में आपदाओं से निपटने के लिए एक मजबूत और प्रभावी ढांचा तैयार किया जा सके।